मनमोहनी

मेरे सीने मे जो सांसे चलती है,
उसकी रफ्तार है तु।
माँ के बाद पहली बार जिसे चाहा है,
वही दुसरी अवतार है तु।।

जिसे सोचने से दिल मे हलचल सी मच जाती है,
वो ख्वाहिशों की बौछार है तु।
अरमानों का गलियारा गुलजार हो उठता है, जिसके आहटों से,
उस बारिश की पहली फुहार है तु।।

जिसके रंगों को देखकर मचलने का जी करता है,
उस तितलियों के पंखों का श्रृंगार है तु।
महकना तो कोई तुझसे सीखे,
हर पुष्प को मिलाकर जो बने, उस इत्र की बहार है तु।।

दीदार से जिसके मिजाज में तपिश आ जाती है,
उन लाखों अदाओं का अंगार है तु।
खुबसुरती की क्या मिसाल दू मै तेरी,
बस इतना कहता हुँ, खुदा का रूखसार है तु।।

मेरी मनमोहनी है तु मै तेरा मनमोहना,
भंवर में डुबते हुए का पतवार है तु।
पर तेरा ये सारा निखार मेरे प्रेम से ही है,
मेरे बगैर बिखरे हुए आईने का औजार है तु।।

3 Comments

  • Mind blowing

    Anand singh Reply
  • Mind-blowing thought 👌👌

    Ritesh Kumar Reply
  • बहुत ही सुंदर कविता है।

    Saurav Mishra Reply

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