माँ-बाबा आपको लगता मैं कुछ समझती नहीं,
पर आपकी कोई भी भावना मुझसे कभी छुपती नहीं।
जब पहली बार आपने मुझे अपने हाथों में था लिया,
आप दोनों का उत्साह मैंने भी था महसूस किया।
मेरा पहला कदम देख, जो खुशी के आँसू आपकी आँखों में थे आये,
वो सच कहती हूँ माँ, मुझसे ना छुप पाए।
“पापा” जब पहला शब्द मेरे मुँह से था निकला,
तो खुशी से नाचते हुए, बाबा मैंने आपको था देखा।
और जब पाँच साल की हो के भी मैं शब्दों को पढ़ ना सकी,
तब पहली बार शिकन की लकीरे मुझे आपके चेहरे पर थी दिखी।
“मैं अलग हूँ” जब डॉक्टर ने आपसे ये था कहा,
दरवाजे पर खड़ा मैंने आपको एक बार फिर रोते था देखा।
इस बार आपकी आँखों में आँसू खुशी के नहीं थे,
याद हैं मुझे वो पल जब आप मेरी वजह से दुखी थे।
उस एक पल ने हमारी पुरी दुनिया ही बदल दी थी,
पता नही कैसे, आपको मेरी आँखों में तकलीफ नहीं दिखी थी।
खुद से नाराज़ हो, मैंने पूरी रात खुद को था पढ़ना सिखाया,
झूठ नहीं कहूँगी माँ, एक भी अक्षर समझ नहीं था आया।
मैंने कोशिश बहुत की बाबा, आपकी उमीदों पर खरी उतरूँ,
पर आपकी नजरों में, हमेशा खुद को थोड़ा कम ही पाया।
आप दोनों ने तो मुझसे नज़रें मिलाना ही बन्द कर दिया हैं,
समझ नहीं आता, मैंने आपको या आपने मुझे हराया हैं।
अब जब बाबा मेरी उंगली पकड़ मुझे हैं चलाते,
उनके चेहरे की निराशा वो मुझसे छुपा नहीं हैं पाते।
माँ, आप भी तो मुझे गोदी में बिठा,
ख़्यालों में खोने लगी हो,
आप दोनों ने मेरे लिये जो सपने थे देखे,
मैं उन्हें पूरा नहीं कर सकूँगी, शायद ये सोचने लगी हो।
बच्ची हूँ, इसलिए सारी बातें अभी भी समझ नहीं हैं आती,
पर एक बात हैं, जो रोज़ महसूस करती हूँ, पर कह नहीं पाती,
उस डॉक्टर कि बातों ने ना जाने कितना कुछ हैं बदल दिया,
हूँ तो मैं आज भी आपकी ही बेटी,
पर फिर भी आप दोनों को मुझसे दूर हैं कर दिया।।