स्त्री है क्या

एक औरत के अनेकों रूप होते है। हर रूप में उसे हम नए अवतार मे देखते हैं, और हर अवतार में वह एक नई जिम्मेदारियों को लेकर उभरती हैं। वह अपने हर जिम्मेदारियों का वहन करना बखुबी जानती हैं।
एक औरत सबसे पहले पुत्री के रूप में जन्म लेती हैं। जहाँ उसे अपने माता-पिता के सम्मान के लिए अपनी खुशियों का भी त्याग करना पड़ता हैं। ये सच है कि बहुत से लोग बेटी को जन्म देने से कतराते है, पर बहुत कम लोग ये बात जानते होंगे कि पुत्री का जन्म किस्मत वालों के घर में होता है।
कन्यादान जिसका भाग्य वालों को नसीब हो,
उस नायाब हीरे को पालना सब के बस की बात नहीं।
तु क्या ठुकराएगा उसके आगमन को, खुदा तेरी हिमाकत जानता हैं,
लक्ष्मी के रूतबे को संभाल पाना सबकी औकात नहीं।।

औरत अपनी दुसरी जिम्मेदारी बहन के रूप मे निभाती हैं। जहाँ वह रक्षा रूपी सुत्र अपने भाई के कलाई पर बाँधती हैं, और उसके रक्षा की कामना करती है। और उसके सुख-दुख में सहभागी होने के लिए वचनबद्ध होती हैं।
बहन भाई के लिए शक्ति का प्रतीक होती हैं, रक्षाबंधन के दिन वह उसकी कलाई पर राखी बाँध उसकी भुजाँए को मजबुत करती हैं।

औरत का तीसरा रूप पत्नी का होता है। इस रूप में वह अपनें कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए अपने माता-पिता और अपने जीवन के सुखद पलों को छोड़ अपने पति के साथ एक नया संसार बसाने की ओर अग्रसर होती हैं। जहाँ बेशक उसे अपने पति के साथ साथ सास-ससुर और ननद को खुश रखना होता हैं। ताकि उसके पिता के सम्मान के साथ ही उसकी अपनी घर-गृहस्थी अच्छी रहें।
ये भी कैसा इतेफाक है, कभी सब उसका कहा करते थे,
आज वह सबका कहा करती हैं।
कभी वह फुल सी नाजुक हुआ करती थी,
आज न जाने कितने दर्द सहा करती हैं।।

एक स्त्री का चैाथा रूप और शायद धरती का वह स्वरूप जिसे ईश्वर से भी बढ़ के माना जाता है, वह है माँ।
एक स्त्री के पुरे जीवन मे माँ बनने का अनुभव बड़ा ही सुखद होता हैं, जो अविस्मरणीय हैं। औरत के लिए उसकी सुन्दरता बहुत मायने रखती हैं, पर माँ के इस भव्य एहसास के लिए उसे अपनी इस कीर्तिमान को भी त्यागना पड़ता हैं। और इस रिश्ते को निभाने के लिए एक औरत को बहुत तपना पड़ता हैं, तब जाकर वह माँ के रूप में खुद को स्थापित कर पाती हैं।

माँ, माँ के लिए मैं क्या कहुँ, बस इतना ही कहुँगा कि,
उसके ममता के छाँव मे जो आनन्द हैं वो जनन्त मे भी कहाँ,
पर बहुत कम ही ऐसे लोग होते है, जिन्हें माँ का प्यार उम्र भर नसीब होता हैं।

एक माँ अपने बच्चों के लिए वो सब कुछ करना चाहती है,
जिससे उसके बच्चों को खुशी और सुख दोनों मिल सके।

जी करता है आसमाँ को छु लू मैं,
ऐसा कर्मों का उड़ान भरूँ।
बन जाऊ वो सभी जो तेरा जी चाहे,
बाहों मे भर के तुझे मैं तेरा गुणगान करूँ।।

सच में कही जनन्त का सुख हैं तों,
वो सिर्फ तेरी पनाहों में हैं।
किसी और के गोद में वो बात कहाँ माँ,
जो आनन्द की बरसा तेरी बाहों में हैं।।

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